भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम उनके सेहन-ए-गुलशन में कभी सोया नहीं करते / शेष धर तिवारी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 6 अक्टूबर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेष धर तिवारी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम उनके सेहन-ए-ग…)
हम उनके सेहन-ए-गुलशन में कभी सोया नहीं करते
अना को हम मुहब्बत के लिए खोया नहीं करते
रहाइश तो उन्ही के साथ होती रात दिन लेकिन
समंदर साहिलों में जिन्दगी बोया नहीं करते
रहे हैं आज तक हम आइनादारों की बस्ती में
छुपा के दोस्तों से आँख हम धोया नहीं करते
चले जाओ अग़र तुम भी, नहीं हैरानगी होगी
कराओ तुम हमें चुप, सोच के रोया नहीं करते
नहीं मुमकिन हमारे ख्वाब कोई छीन ले हमसे
कि आँखें मूद कर हम बेखबर सोया नहीं करते