भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम उसूलों पर चले दुनिया में शोहरत हो गई / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 1 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम उसूलों पर चले दुनिया में शोहरत हो गई ।
लेकिन अपने घर के लोगों में बग़ावत हो गई ।
आँधियों में तेरी लौ से जल गई उँगली मगर,
ये तसल्ली है मुझे तेरी हिफ़ाज़त हो गई ।
पहले उसका आना-जाना इक मुसीबत-सा लगा,
रफ़्ता-रफ़्ता उस मुसीबत से मोहब्बत हो गई ।
जो गवाही से थे वाबस्ता वो सब पकड़े गए,
और जो मुल्ज़िम थे उन सब की ज़मानत हो गई ।
मेरे मेहमाँ भी थे ख़ुश-ख़ुश और मैं भी मुत्मईन,
उनकी पिकनिक हो गई मेरी इबादत हो गई ।
आज फिर दिल को जलाया मैंने उनकी याद से,
आज फिर उनकी अमानत में खयानत हो गई ।
मेरी हालत तो नहीं सुधरी मगर इस फेर में,
ये हुआ मेरी तरह उसकी भी हालत हो गई ।