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हम और तुम-5 / बोधिसत्व

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तो आओ
तन और मन के जिस हिस्से पर न हों हमारा अंकन
अभी इसी क्षण उस पर अंकित करो
कुछ लकीरें बना दो उस पर
कुछ रेखाएँ खींच दो
जैसे नए बर्तनों पर खुदवाए थे हमने अपने-अपने नाम
ठठेरा बाजार में
ताकि हम उन्हें असंख्य बर्तनों में खोज पाएँ
हमने एक दूसरे के शरीर पर अंकित किए अदृश्य लेख और रेख
जैसे कि असंख्य शरीरों के बीच
जब देह का दीपक न जल पाए तब भी
एक दूसरे को खोज पाएँ