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हम गीत सुनाबी मिथिला केर / किसलय कृष्ण

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कोना पजरल शहर छै आ उजड़ल छै गाम।
बनल छै मसान आइ अपन मिथिला धाम।

देखि कानैत हेता आइ कोकिल कवि,
कोंढ़ फाटैत हेतनि देखि पूतक छवि,
सगर लाठी केर राज आ फूसिये सँ काज,
आब शोणित केर रहलै नइं मिसियो टा दाम।

कुपित कोशी आ गंडक-बलान भेल छै,
हमरा गामक बिलाइए मखान गेल छै,
अपन माछो हेरायल आ सभ लोके बेरायल,
कोनो सन्दूक में बन्द भेलइ सभ पोथी-पुराण।

चारू भर पसरल छै बस दंगा-फसाद,
कानि सीता पठौने छथि आइए समाद,
सुन रे भैया हमर आ सुन गे दैया हमर,
छौ धरती केर सप्पत मिलि बचबिहें सम्मान।

गीत गूँजैत छलै जतय पराती आ साँझ,
हवा पच्छिम सं आबि गेल मिथिलाक माँझ,
छी ई धरती हमर आ छी परती हमर,
चलू सभ मिलि फेर गाबै छी कोकिल केर गान।