भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 1 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे।

कीच का क्या रंग, क्या है उत्स कादो का
जेठ की है धूप कैसी मेघ भादो का
ये रहस्य वैसे समय के गात खोलेंगे
हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे

किन वनों, मरू प्रांतरों से हवा क्या लायी
देह जूही नाग तन का मन उड़ा लायी
यह भरम दिक्पंख पर जलजात तौलेंगे
हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे

तुहिन का क्या अर्थ, क्या सन्दर्भ भावी का
इड़ा का क्या गीत है, क्या काव्य रावी का
यह मिथक इतिहास के सहजात ढो लेंगे
हम न बोलेंगे, कमल के पात बोलेंगे।