भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम पर तरस न खाओ कोई / दीप्ति मिश्र

Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:24, 9 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति मिश्र |संग्रह = है तो है / दीप्ति मिश्र }} [[Ca…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम पर तरस न खाओ कोई
बस अब सजा सुनाओ कोई

कब से कहा नहीं कुछ तुमने
फिर इल्ज़ाम लगाओ कोई

डूब रहे हैं खामोशी में
अब तूफ़ान उठाओ कोई

धड़कन बन्द हुई जाती है
गहरी चोट लगाओ कोई

टूट रहे हैं हँसते-हँसते
देकर ख़ुशी रुलाओ कोई