भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम पहिरे मूगन की माला / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हम पहिरे मूंगन की माला,
हमारी कोऊ गगरी उतारो
कहां गये मोरे सैंया गोसंइयां,
कहां गये वा रे लाला,
हमारी कोऊ गगरी उतारो। हम पहिरे...
एक हाथ मोरी गगरी उतारो,
दूजे घूंघट संभालो,
हमारी कोऊ गगरी उतारो। हम पहिरे...
एक हाथ मोरी गगरी उतारो,
दूजे से चूनर संभालो,
हमारी कोऊ गगरी उतारो। हम पहिरे...
एक हाथ मोरी गगरी उतारो,
दूजे से लालन संभालो,
हमारी कोऊ गगरी उतारो। हम पहिरे...