भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम सितारों में तेरा अक्स न ढलने देंगे / अम्बरीन सलाहुद्दीन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:00, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अम्बरीन सलाहुद्दीन }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम सितारों में तेरा अक्स न ढलने देंगे
चाँद को शाम की दहलीज़ पे जलने देंगे

आज छू लेंगे कोई अर्श मेरे वहम ओ गुमाँ
ख़्वाब को नींद की आँखों में मचलने देंगे

हम भी देखेंगे कहाँ तक है रसाई अपनी
दिल को बहलाएँगे हम और न सँभलने देंगे

शब की आग़ोश में फैलें न गुमाँ के साए
अब निगाहों में कोई ख़ौफ़ न पलने देंगे

हो न जाए कहीं अंजाम से पहले अंजाम
इस कहानी को इसी तौर से चलने देंगे

अक्स-दर-अक्स मिलेंगे तुझे मंज़र मंज़र
तू अगर चाहे भी तुझ को न बदलने देंगे

नक़्श-दर-नक़्श यहीं ख़ाक हुए जाएँगे
ख़ुद को इस दश्त-ए-गुमाँ से न निकलने देंगे