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हमरे लेल तैं / केदार कानन

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हमरे लेल तँ उगैत अछि
बालारूण प्रतिदिन
अहल भोरमे
लुटबैत अपन रश्मि-किरण
हमहीं नहि उठि पबैत छी
स्वागत लेल
पड़ल रहि जाइत छी
निन्नमे
स्वप्न जीवन गमबैत

असोथकित भेल
निमुन्न घरमे
कँपैत रहैत अछि प्राण
सूर्यक आहटि सुनियोक’ निष्प्रभ
जेना स्वागतक सभटा ऊहि
थाकि क’ मोनक कोनो एकान्तमे
डूबि गेल हो

हमरे लेल तँ उगैत अछि
 चान नित्तह
पहर रातिकें शीतलता बिलहैत
थाकल मोनकें थपकबैत
सुनबैत कोनो लोकगीत
हेराएल तँ रहैत छी धुनमे
मुदा जागिकें
बहराइत कहाँ छी
एकोरत्ती
एकोरत्ती
तरेगनसँ भरल
चानक आकाश लेल
बाहरक दुनियामे

अपन एकान्तमे डूबल
रहैत छी निमग्न
फूसिक प्रत्याशामे अनेरे
अनेरे रहैत छी कटल
दुबकल अपन अन्हारक खोहमे

मुदा कतेक जरूरी अछि
बहराएब घरसँ
अपन एकान्तक जंगलसँ
प्राण लेल
जीवन लेल
कतेक बेगरता अछि
हमर बहरएबाक।