भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम्में सजैलेॅ छी आपनोॅ मड़ैया तोंय आवी जइयोॅ / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 27 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAng...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्में सजैलेॅ छी आपनोॅ मड़ैया तोंय आवी जइयोॅ
सेज कुसुमी सजैलेॅ छी आवो जइयो
तोरा लेॅ व्याकुल छै रोआं-रोआं तक, मन व्याकुल
तोरा मन दौं हँकारोॅ तोंय आवी जइयोॅ
तोरे लेॅ खिललोॅ छै गेंदा, चमेली कि हेनोॅ महकै
जेन्होॅ तन-मन ई हमरोॅ तोंय आवी जइयोॅ
तोरे लेॅ कारोॅ चुनरिया पिन्ही केॅ छै रात ऐलोॅ
तहूँ अग-जग महकैलेॅ तोंय आवी जइयोॅ
तोरै सें हम्में छी फूलो ई, सेजो ई, रातो पियवा
ई नै हरदम हुवै छै तोंय आवी जइयोॅ