भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर नया मौसम नई संभावना ले आएगा / गिरिराज शरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 25 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज शरण अग्रवाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> हर नया मौसम नई…)
हर नया मौसम नई संभावना ले आएगा
जो भी झोंका आएगा, ताज़ा हवा ले आएगा
और कब तक धूप में तपती रहेंगी बस्तियाँ
बीत जाएगी उमस, सावन घटा ले जाएगा
सूखी-सूखी पत्तियों से यह निराशा किसलिए
टहनियों पर पेड़ हर पत्ता नया नया ले आएगा
यह भी सच है बढ़ रहा है घुप अँधेरा रात का
यह भी सच है वक़्त हर जुगनू नया ले आएगा
रास्ते तो इक बहाना हैं मुसाफ़िर के लिए
लक्ष्य तक ले जाएगा तो हौसला ले आएगा