भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर सू नहीं थे शूल,अभी कल की बात है / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 25 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

र सू नहीं थे शूल, अभी कल की बात है
राहों के थे उसूल, अभी कल की बात है

क़ाफी थी एक ठेस बिखरने के वास्ते
इंसान भी थे फूल, अभी कल की बात है

उम्रों का वो लिहाज़ कि बरगद की राह में
आते न थे बबूल, अभी कल की बात है

दोनों ही एक डाल के पंछी की तरह थे
ये राम वो रसूल, अभी कल की बात है

आती थी बात जब भी वतन के व़कार की
क़ुरबानी थी क़ुबूल, अभी कल की बात है

अपनी तो ख़ैर गिनती दीवानों ही में रही
करते थे तुम भी भूल, अभी कल की बात है