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हरगिज़ वो शख्स साहिब किरदार नहीं है / उदयप्रताप सिंह

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हरगिज़ वो शख्स साहिब किरदार नहीं है
जो दिल से मोहब्बत का तरफदार नहीं है

सैलानियों से दरिया इशारों में कह गया
जो मौज तुम्हे चाहिए उस पार नहीं है

मंगल पे पहुंचने का ख्वाब देख रहे हैं
साँसों के आने जाने पे अधिकार नहीं है

शायर को ये तुर्रए इमत्याज़ किस लिए
कलंदर हैं वैरागी है तलबगार नहीं है

किसी दूसरी दुनियाँ में भी शायद कोई मिले
जो ग़र्दिश ए दौराँ में गिरफ्तार नहीं है

करना है अगर प्यार करो प्यार की तरह
अहसान तो किस्मत का भी स्वीकार नहीं है

हर पल चुरा रहा है कोई ज़िन्दगी के दिन
ये कैसा मुसाफिर है खबरदार नहीं है

दामन न गीला कीजिये ना चीज़ के लिए
आँसू हैं महज़ मोतियों का हार नहीं है