भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरि कँ बिसराय होली मतवाला) / आर्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 31 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर्त }} {{KKCatKavita‎}} {{KKAnthologyHoli}} Category:अवधी भाषा <poem> हरि कँ ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरि कँ बिसराय, काहें फिरे तूँ भुलाना ।।

सुन्‍दर देहियाँ से नेहिया लगाया डहँकि डहँकि धन सम्‍पति कमाया
तबहूँ न कबहुँ सुखी होई पाया, भूल्‍या तूँ कौल पुराना
कोई साथ न जाय, भूल्‍या तूँ कौल पुराना ।।

श्रृंगीऋषि आश्रम कै चेता डगरिया
छोडि छाडि माया कै बजरिया
प्रभु के नाम कै तूँ ओढा चदरिया जो जीवन है सफल बनाना
इहै साँचा उपाय जीवन है सफल बनाना ।।