भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरि को धूप-दीप लै कीजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:31, 21 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरि को धूप-दीप लै कीजै।
षटरस बींजन विविध भाँति के नित नित भोग धरीजै।
दही, मलाई, घी अरु माखन तापो पै लै दीजै।
’हरीचंद’ राधा-माधव-छबि, देखि बलैंया लीजै॥