हसीन ख़ुद को शाम से जवां सहर से देखिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
हसीन ख़ुद को शाम से जवां सहर से देखिए
कि आप अपने आप को मेरी नज़र से देखिए
जो देखने को आपको मेरे कदम रुके तो क्या
कि रास्तों के रास्ते गए ठहर-से देखिए
ये जानना जो आपको कि है जुनून क्या बला
तो रात-रात घर मेरा फिर अपने घर से देखिए
किसी उफ़नती मौज-सा ये आपका शबाब है
कि रेत के कई किले गए बिखर-से देखिए
अब आइने में आपका ये अक्स आप तो नहीं
अगर है ख़ुद को देखना तो फिर जिगर से देखिए
पलट-पलट न देखिए यूँ आप अपने-आप को
गुलाब तो गुलाब है उसे जिधर से देखिए
यकीन मुझ पे जो नहीं कि कौन सब से है हसीं
तो आप ख़ुद ही पूछ कर जहान भर से देखिए