भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथी आया / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:03, 19 अगस्त 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथी आया गाँव में
सूँड़ उठाकर खड़ा हो गया
बड़े नीम की छाँव में ।

भारी-भरकम काला-काला
लम्बे-लम्बे दाँतों वाला
तोड़ रहा गन्ने की लाठी
लगता है शौकीन निराला

उठा-उठा कर सूँड़
मारता जाता अपने पाँव में
हाथी आया गाँव में ।।

कान बड़े हैं आँखें छोटी
सारी-सारी चमड़ी मोटी
हर दिन सुबह शाम खाता है
बारह सेर चून की रोटी

रोज़ नहाने को जाता है
काका के तालाब में
हाथी आया गाँव में ।।