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हिन्दुस्तानी सोच पुरानी / शिव ओम अम्बर

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हिन्दुस्तानी सोच पुरानी,
कोउ नृप हमहिं का हानी।

लौटेंगी भूखी परवाजें,
पिंजरे में है दाना-पानी।

सबको लगती है अलबेली,
अपनी-अपनी रामकहानी।

बन्धन में मत बाँधों, कवि है-
रमता जोगी बहता पानी।

दीवाने पहुँचे मंज़िल पे,
फिर-फिर भटके ज्ञानी-ध्यानी।

ताक्त-इज़्ज़त-दौलत-शोहरत,
आँखें मुँदते ही बेमानी।

दर्द बना देता है दिल को,
सूफी, ग़ज़लों को रूहानी।

मैली हो उजली हो इक दिन,
चादर पड़ती है लौटानी।