भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिन्दू हूँ थेाड़ा ख़ुद को मुसलमान कर रहा / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 30 दिसम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 हिन्दू हूँ थेाड़ा ख़ुद को मुसलमान कर रहा
 हिन्दोस्ताँ की शान में ऐलान कर रहा

 दुनिया हमारी दोस्ती को याद रखेगी
 ‘डी एम मिसिर ‘को दोस्तो ‘ मन्नान ‘ कर रहा

 पुरखों ने उठायी थी जो दीवार तोड़ दी
 लेकिन मैं उनके नाम का सम्मान कर रहा

 जंगल चला हूँ काटने तो सोचकर यही
 लेागों के लिए रास्ता आसान कर रहा

 क्यों झूठ में भगवान को बदनाम कर रहे
 जेा कुछ भी कर रहा है वो इन्सान कर रहा

 दौलत जुटा के हो गया अमीर वो ज़रूर
 दौलत लुटा के ख़ुद को मैं धनवान कर रहा

 थेाड़ी सी फ़िक़्र ही तो ज़माने के लिए है
 इंसानियत पे क्या कोई एहसान कर रहा

 बदला है ज़माना अभी बदलेगा और भी
 कल के लिए जारी नया फ़रमान कर रहा