भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हीर राँझे दे हो गए मेले / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:15, 15 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह }} Category:पंजाबी भाषा {{KKCatKavita}} <poem> हीर और रा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हीर और राँझा का मिलन हो गया।
हीर तो उसे ढूँढ़ने के लिए भटकती रही
किन्तु प्रियतम राँझा तो उसकी बगल में ही खेल रहा था
मैं तो अपनी सब सुध-बुध खो बैठी थी।


मूल पंजाबी पाठ

हीर राँझे दे हो गए मेले,
भुल्ली हीर ढूँढ़ेदी बेले,
राँझा यार बग़ल विच खेले,
मैनू सुध-बुध रही ना काई।