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हू जो महिफ़िलि में परे वेठो आ / एम. कमल

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हू जो महिफ़िलि में परे वेठो आ।
चप में आवाज़ भरे वेठो आ॥

हुन जे, हर चोट ते मुरिकण मां लॻो।
जीउ ज़ख़मनि सां भरे वेठो आ॥

हुन जे हथ में छुरो आ, हुन खे छॾियो।
असली क़ातिल त परे वेठो आ॥

सो अंधेरे में जिए थो, जेको।
नूर ते आस धरे वेठो आ॥

पंहिंजे आाज़ खे भी कीअं ॿुधी!
आदमी खुद खां परे वेठो आ॥

आखि़रीन मौत जे बेदे ते, वक्तु।
सबुरसां आरो करे वेठो आ॥