भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हेत करि देत श्री यमुने वास कुंजे / चतुर्भुजदास

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चतुर्भुजदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हेत करि देत श्री यमुने वास कुंजे ।
जहाँ निसवासर रास में रसिकवर, कहां लों वरनिये प्रेमपुंजे ॥१॥
थकित सरिता नीर थकित ब्रजबधू भीर, कोउ न धरत धीर मुरली सुनीजे ।
चतुर्भुजदास यमुने पंकज जानि, मधुप की नामी चित्त लाय गुंजे ॥२॥