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हेमन्त प्रात (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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हेमन्त प्रात (कविता का अंश)
 
क्षीण पीत निष्प्रभ अंगों के ऊपर उसके
मरती थी छवि ज्योत्सना ठंडी आहें भर
केशों पर , बिखरे केशों पर गिरे हुये थे
पीले पल्लव, था सब ओर उमडता सूना
निष्ठुर मृत्यु का प्रबल वेग से बढता मर्मर
पडी हुयी उनकी वंशी नीरव धरणी पर
(हेमन्त प्रात कविता का अंश)