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हैं ख़तागर कि बेख़ता देखो / ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

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हैं ख़तागर कि बेख़ता देखो,
हम पे सादिर हुई सज़ा देखो ।

और क्या कर सकेगा कोई यहाँ,
हो रहे हैं सभी ज़ुदा देखो ।

सब अगर देखते हैं चुप रहकर,
तुम भी घर जाओ और मज़ा देखो ।

हम हरीफ़ों के शह्र में तनहा,
और हद में है ये खुदा देखो ।

हर तरफ़ है सुकूत का आलम,
हँस रही शह्र की हवा देखो ।

हैं उधर छटपटाती कंदीलें,
आँधियों की इधर वफ़ा देखो ।