भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होकर बड़ा बनेगा क्या तू? / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 12 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोरी गाकर तुझे सुलाती
तभी कल्पना में खो जाती
होकर बड़ा बनेगा क्या तू
सोच सोच कर ही रह जाती

बेटा अगर शिवाजी जैसा
तू रण में रणधीर बनेगा
भारत माँ बलि-बलि जायेगी
उसका सारा कष्ट कटेगा

अगर विवेकानन्द बनेगा
धर्म-पताका फहरायेगी
सकल विश्व में भारत भू की
मिट्टी चंदन बन जायेगी

क्या सुभाष-सा वीर बनेगा
अथवा वसु-सा विज्ञानी
क्या योगी अरविन्द बनेगा
अथवा कोई कवि ज्ञानी

जो भी होगा अच्छा होगा
मैं अधीर क्यों होती हूँ।
मेरा बेटा नाम करेगा
सुन्दर सपने बोती हूँ।