भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होटल पैराडाइज़ / देवी प्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 12 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= देवी प्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस होटल में मैं रुका हूँ वह गुलाबी नियान लाइट में पैराडाइज़ है मेज़
चिपचिपी है गिलासों और कप और दीवारों पर ग्रीज़ है बिस्तर का चादर ऐसा है
कि जैसे कीर्तन में बिछाने के बाद झटककर यहाँ बिछा दिया गया हो ओढऩे
वाला चादर ज्यादा सन्देहास्पद है - जंगल काटने वाले किसी मामूली स्मगलर का
सेक्सवर्कर के साथ अभिसार का बिछावन। तकिया किसी मेडिकल रिप्रज़ंटेटिव
की दवाओं का थैला लग रहा है

होटल मालिक का तीसरा बेटा सीने की ज़ंजीर गले में डालकर घूमता है -- स्टेशन
के पास माइनिंग के पैसे से होटल होने का जो भरोसा उसके पास है उसकी तुलना मेरे हिन्दी
में लिखने के गिरते आत्मविश्वास से नहीं की जा सकती

वह मेरे कुर्ते, मोबाइल और होने को हिकारत से देखता है और पूछता रहता है
कि सब ठीक तो है सर मैं कहता हूँ कि सब ठीक होता तो तुम यह होटल न
बनवा पाते उसने हँसते हुए कहा कि होटल के परिसर में उसने मन्दिर बनवा
रखा है माँ का आदेश हुआ कृष्ण उसका सखा है बोलो राधे-राधे
मैं बिस्तर से उठता हूँ -- हड्डियों की चट-चट की आवाज़ें आती हैं। मैं अपने
पास कम साल होने की घबराहट से नहीं से अत्याचार की परम्पराओं से विचलित हूँ

होटल का सबसे दुबला कर्मचारी आकर पूछता है कि टी० वी० चला दूँ तो जैसे याद
करके औचक कहता हूँ कि पंखा चला दो उसने कहा वह ख़राब है उसने जाते
हुए कहा कि कुछ और चाहिए क्या तो मैंने कहा कि सरसों का तेल जिसे वह
वाकई दे गया बहुत धीमे से यह बताते हुए कि वह इस बोतल को अपने कमरे
से लाया है जो होटल की छत पर है ठीक वहाँ जहाँ पैराडाइज़ लिखा है उसके पीछे

वह पूछता है कि आप क्या काम करते हैं तो मैं कहता हूँ कि कविताएँ लिखता
हूँ वह कहता है कि क्या आप इस बात को अपनी कविता में लिख सकते हैं
कि होटल के मालिक का दूसरा बेटा हर तीसरे दिन गुलाबी नियान लाइट में
नहाए पैराडाइज़ की बरसाती में बारह के बाद आता है, मुझे नंगा करता है और
पेट के बल लिटाता है मैंने कहा कि हिन्दी में शील और अश्लील को लेकर बहुत
पाखण्ड है इसीलिए सच कहने के तरीके भी सीमित हैं -- काफ़ी हद तक अप्रमाणिक ।

वह मुझे देखता रहा । फिर वह चाय नाश्ते के बर्तन हटाता रहा । इस दौरान कभी
टी० वी० का रिमोट दब गया -- टी० वी० चल गया और लोकतन्त्र के फ़साद का बहुत
सारा धुआँ कमरे में भर गया -- बहुत सारे फ़ासिस्ट कमरे में टहलने लगे जिसमें
होटल के मालिक का तीसरा बेटा भी था जो यह कहते हुए कमरे में घुस आया
कि सर सब ठीक तो हैं ?