भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होते पराते चलि जइहो मोरे राजा / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:05, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
होते पराते चलि जइहो मोरे राजा।
तनिक भर बोल बतिया लऽ मोरे राजा।
रचि-रचि जेवना हम अपने बनाइव,
बेनिया डोला के दुलार से जेंवाइब
तलफल जवनिया के तनिका जोगा के
सबेरे के गाड़ी से चल जइहऽ राजा। तनिक भर।
पाकल-पाकल पनवाँ के बीड़ा लगाइब
करब ना टोना आपना हाथे खियाइब
विरहा के रतिया भेयावन बुझाला
अरजी पर हमरा छोहा जइहऽ राजा। तनिक भर।
जइबऽत जिनिगी अन्हार होई जाई।
अइसन पियार कतहीं ना भेंटाई
राते दिन कुन्हुरेली नेहिया के दीयरी
नेहिया के बाती उसका जइहऽ राजा। तनिक भर।
दिनरात सइयाँ तोर टहल बजाइब
कहबऽ से करेब ना तनिका लजाइब
छछनेला तानवाँ के तातल जवानी
कहत महेन्दर सेरा जइह राजा।
तनिक भर बोल बतिया लऽ मोरा राजा। तनिक भर।