भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली का मौसम आया है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 15 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होली आई, होली आई ।
गुजिया, मठरी, बरफ़ी लाई ।।
   
मीठे-मीठे शक्करपारे,
सजे -धजे पापड़ हैं सारे ।
चिप्स कुरकुरे और करारे,
दहीबड़े हैं प्यारे-प्यारे ।।
    
तन-मन में मस्ती उभरी है,
पिस्ता बरफ़ी हरी-भरी है ।
पीले, हरे गुलाल लाल हैं,
रंगों से सज गये थाल हैं ।।
  
कितने सुन्दर, कितने चंचल,
हाथों में होली की हलचल,
फागुन सबके मन भाया है!
होली का मौसम आया है!!