भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंधड़ / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर‘र छुट भाई
बगूळियै स्यूं खड़बड़
बणा’र बात रो बंतगड़
बणग्यो जेठ रो
 रीसलो बायरो अन्धड़
हुग्यो खंखोळीज’र बदरंग
गिगनार
जमगी सूरज रै होठां पर
फेफडयां
हालग्यां
पीपंळ र बड़
जकांरी पताळ में जड़
हुग्या
लड़ झगड़’र लस्त पस्त
बिखरग्या चनेक में
पंखेरूआं रा आळा
देख’र गड़बड़
आया उमड़’र बादळ
सुण’र बारीं दकाल
हुग्यो निढाळ हैकड़ अन्धड़
बरस्या पाछो जम्यो
आकळ बाकळ हुयोड़ी
धरती रो जीव
आयो तिरसायै चातग नै चेतै
फेर पीव