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अकेला / शंख घोष / सुलोचना वर्मा / शिव किशोर तिवारी

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कितनी उम्र थी, दिल भी क्या था
पद्मा नदी ने जब दे दी थी मुझे विदा !
आज मन ही मन जानता हूँ कि तुम नहीं, तुम नहीं,
मैं ही ख़ुद को छोड़ आया था आधी रात।

उसी अपराध का फल है, नूरुल, कि तू अकेला
मेरे बग़ैर ही लड़ाई को चला गया
उसी अपराध के कारण आज बैठा-बैठा देख रहा हूँ तुझ
अकेले का दु:ख, मृत्यु, विजय।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी

('आदिम लतागुल्ममय' नामक संग्रह से, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - एका)