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अपराधिनी मिष्टीमोनी और जल्लाद नज़रुल मलिक की प्रेमकथा / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय

अलीपोर जेलेपोरा की प्रेस में मसि से सोरबोर
सितबरन साड़ी में मिली थी मिष्टीमोनी
'सरकारी कागोज की छपाई बाँए हाथ का
खेला है इसके लिए' बताया जेल वॉर्डन ने

सज़ा मृत्यु, क्यों ?
'अपार राग होता है क्लेश भी अपार
जननी होकर अपनी ही दो कन्याओं की
विष देकर हत्या । एक तो इसी का दूध पीती थी'

'हाय ! कलयुग हाय ! त्रियाचरित्र' आते-जाते जन
उच्छवास भरते किन्तु मिष्टीमोनी मौन माथा नीचे
सदैव काजमग्न रहती, न कुछ सुनती, न कहती

मध्याह्न का भोजन करती जल्लाद नज़रुल मलिक के
सँग दूर पुकुर के निकट
'हाय ! कलयुग, हाय ! त्रियाचरित्र' तब फिर कहते जन
स्त्रियाँ उच्छवास भरती पुरुषों की श्मश्रु व्यँग से तिर्यक

कभी-कभी नज़रुल से अनुग्रह से मँगवाती रसगुल्ला
गिरीशचन्द्र डे और नकुरचन्द्र डे की दोकान से
सरस्वतीरँजन मुखरँजन से दो पान
यही उत्सब था मिष्टीमोनी और नज़रुल मलिक के मध्य

मेघों से कलँकित दिन की दोपहर कभी स्वामी आते
जिन्होंने किया था बलात्कार अपनी ही दोनों कन्याओं का
जिसके कारण विष दे दिया मिष्टीमोनी ने दोनों को
मिष्टीमोनी प्रसन्न हो जाती थी उस दिन

’हाय ! कलयुग, हाय ! त्रियाचरित्र' जन उच्छवास भरते
'ऐसे स्वामी के आने पर हर्ष ! बिस्मय है ! वेश्या की
विष्ठा भी इससे अल्प कामुक होगी !'

किन्तु कोई नहीं जानता कि मिष्टीमानो की
दोनों कन्याओं के विषय में वही था जो
बात करता था जैसे कोई अपनी कन्या के विषय में
बात कहता है, सुनाता है उनके विषय में कोई
प्रसंग पिता की स्नेह से भर
बताओ भला बलात्कारी सदैव नहीं होता बलात्कारी
हत्यारिन सदैव नहीं होती हत्यारिन

इसे केवल जानता था जल्लाद नज़रुल इस्लाम
जो प्रतिदिन रस्सी पर मोम चढ़ाता था
जिसे मिष्टीमोनी को फाँसी देनी थी ।