भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अम्न की दीवार में दर हो गए / संजय मिश्रा 'शौक'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अम्न की दीवार में दर हो गये
 जंग-जू जब से कबूतर हो गये

आज फिर पानी गले तक आ गया
हाथ अपने आप ऊपर हो गये

मैं भिकारी हो गया तो क्या हुआ
मांगने वाले तवंगर हो गये

दीद-ए-नमनाक से आंसू गिरे
और चकनाचूर पत्थर हो गये

शौक इन आँखों का है सारा कुसूर
जागते ही ख्वाब बेघर हो गये