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अलग भी है / रामगोपाल 'रुद्र'
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अलग भी हैं, लगे भी हैं!
उगा जो चाँद पूनम का,
समुन्दर का चलन चमका;
चकोरों की न कुछ पूछो!
सजग भी हैं, ठगे भी हैं!
खुली पाँखें, लगीं आँखें;
बँधें, पर किसलिए माँखें?
कमल के कोष में भौरें
बिसुध भी हैं, जगे भी हैं!
कहें क्या, कौन होते हैं
कि जिन बिन प्राण रोते हैं!
रुलाते हैं, हँसाते हैं!
पराये भी, सगे भी हैं!