भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ भई नकटे / कैलाश मनहर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ भई नकटे,आँगन लीपें
"चल हट, मैं तो फोड़ूँगा ।"

आ जा,मिल कर दोनों फोड़ें
"उधर भाग, मैं लीपूँगा ।"

सुन भई नकटे,राम राम जप
"मरा मरा रे मरा मरा ।"

ओ भई नकटे, मरा भला क्यों?
"राम राम जपने दे, जा ।"

सुन भई नकटे, भला काम कर
"बुरे भले से तुझ को क्या ?"

बुरा भला सब एक है नकटे
"मुझ को तू मत पाठ पढ़ा ।"

नकटे तेरे पिछवाड़े में
देख कँटीला पेड़ उगा ।

"हाँ, मैं छाया में बैठूँगा
फूट, मेरा माथा मत खा ।।"