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आकाश अपने में / नंदकिशोर आचार्य

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हौले से परसती
गुज़रती है हवा—
सूने में अपने कहीं गहरे में
बसा लेती है
सारे फूल :
महक जाता जिन से आकाश

हौले से मुँद रही पलकें
बसा लेतीं पूरा आकाश
                अपने में
सपने के खिल आने के लिए ।

4 दिसम्बर 2009