भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज केतकी फूली / रामकुमार वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज केतकी फूली!
नभ के उज्जवल तारों से हो--
निर्मित जग में झूली।
आज केतकी फूली!

अंतरिक्ष का बिखरा वैभव पृथ्वी में संचित है,
इसीलिए यह कलिका नभ-छवि ले, भू पर कुसुमित है;
पवन चूम जाता है, मेरी इच्छा से परिचित है,
इस मिलाप में ही सारे जीवन का सुख अंकित है।

मैंने आज प्रेम की उँगली से
वह चिर छवि छू ली॥
आज केतकी फूली।