भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज समन्दर है बेहाल / विज्ञान व्रत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज समन्दर है बेहाल
फेंक मछेरे अपना जाल

थम जाएगा यह भूचाल
ऐसा कोई वहम न पाल

जिसको दुनिया पहचाने
ख़ुद की वो पहचान निकाल

तू भी ढूंढ़ न पाएगा
अपने जैसी एक मिसाल

मेरे वापिस आने तक
रखना मेरी साज-सम्भाल