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आवऽ हो आवऽ हे जल भरल मेघ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

आवऽ हो आवऽ
हे जल भरल मेघ
रिमझिम फुहार संगे आवऽ
आवऽ एह जीवन में
आपन साँवर सनेह देवे आवऽ
आज परवतन के
चोटियन के चूम-चूम
आवऽ बन-जभेंगलन पर
छाँह करत झूम-झूम।
आसमान में गम्भीर
गरजन सुनावऽ
उमड़-घुमड़ आवऽ हो
सजल मे आवऽ
पुलकित कदंब वन
फूलन का आँखन से
नभ के निहारे
नदियन के कलकल धुनि
तहरा के देख-देख
जोर से पुकारे
आवऽ हो आवऽ
हृदय के हरखित बनाऽ
आवऽ हो आवऽ
प्यास के मिटावऽ
आवऽ हो आवऽ
आँख के जुड़ावऽ
आवऽ हो आवऽ
हमरा मन में बसे आवऽ
उमड़-घुमड़ आवऽ हो
सजल मेघ आवऽ