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आह्वान गीत / किसलय कृष्ण

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उड़ाही सूखल पोखरि आ अप्पन माछ-मखान बचाबी
यौ मैथिलजन जागू ने, हेराइत अप्पन पहिचान बचाबी

मातृवाणी बिसरा रहल जखन चिनवारे पर
कतेक आस राखब हम तखन सरकारे पर
सुमन-किरण-यात्रीक बाट बिसरल छी हम
अपन राग आ तान बिसरि ससरल छी हम
अपन फाग संग चैतावर आ माटिक सभ गान बचाबी
यौ मैथिलजन जागू ने, हेराइत अप्पन पहिचान बचाबी

दीनाभद्री आ लोरिक, सलहेस केँ याद करी
अपनलोक सँ बस निजभाषा में संवाद करी
कवि विद्यापतिक मंच फेर अनुशासित हो
जतय मैथिलीक राग-तान परिभाषित हो
भारती, भामती आ जानकीक ई भूमि से गुमान बचाबी
यौ मैथिलजन जागू ने, हेराइत अप्पन पहिचान बचाबी

बिहारी-मधेशी बनल मिथिले में नाम हमर
प्रवास गेलहुँ त' पूर्वांचली पहिचान हमर
आयातित त्यौहार में हेरायल ओ रीत अपन
आनक धुन पर किकिया रहल गीत अपन
चेत जाउ आबो, पुरूखा केर संस्कृति खरिहान बचाबी
यौ मैथिलजन जागू ने, हेराइत अप्पन पहिचान बचाबी