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उम्मीद की सूई / कुमार कृष्ण

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जीवन को सिलती है जब उम्मीद की सूई
गुनगुनाने लगते हैं छोटे-छोटे सपनें
खेलने लगता है बच्चों की तरह मन
वह जीत लेना चाहता है जीवन की जंग
जीत लेना चाहता है तरह-तरह के खेल
घूमना चाहता है अपने पैरों से पूरी दुनिया
छुपा लेना चाहता है अदरक की तरह
खुशियों के तमाम बीज
जीवन को सिलती है जब उम्मीद की सूई
वह बाँध लेना चाहता है अपने दोनों हाथों से
बचे हुए रिश्ते
दूब की तरह छुपा है जहाँ विश्वास
फाँक भर बची है जहाँ मिठास।