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उस पर्वत पर जहाँ कुंजों में / कालिदास

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स्थित्‍वा तस्मिन्‍वनचरवधूभुक्‍तकुण्‍जे मुहूर्तं
     तोयोत्‍सर्गं द्रुततरगतिस्‍तत्‍परं तर्त्‍म तीर्ण:।
रेवां द्रक्ष्‍यस्‍युपलविषमे विन्‍ध्‍यपादे विशीर्णां
     भक्तिच्‍छेदैरिव विरचितां भूतिमंगे गजस्‍य।।

उस पर्वत पर जहाँ कुंजों में वनचरों की
वधुओं ने रमण किया है, घड़ी-भर विश्राम
ले लेना। फिर जल बरसाने से हलके हुए,
और भी चटक चाल से अगला मार्ग तय
करना।
विन्‍ध्‍य पर्वत के ढलानों में ऊँचे-नीचे
ढोकों पर बिखरी हुई नर्मदा तुम्‍हें ऐसी
दिखाई देगी जैसे हाथी के अंगों पर भाँति-
भाँति के कटावों से शोभा-रचना की गई
हो।