भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊँट / सुधा चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोज़ सवेरे कितने ऊँट,
पीठ लाद ढेरांे तरबूज़।
धीरे-धीरे कहाँ चले,
जब पहुँचेंगे पेड़ तले-
गर्दन ऊँची कर खाएँगे,
कड़वी नीम चबा जाएँगे।
मालिक हाँकेगा जब उनको
बल-बल, बल-बल, गुस्साएँगे!