Last modified on 9 सितम्बर 2011, at 13:56

एक पत्थर और / हरीश बी० शर्मा


किनारों पर चलते
पत्थर मारते नदी में
आवाज होती छपाक
रौंदते रेत को-चलता रहता है सफर
किनारे का सफर
पानी से बेहतर माटी
जहां एहसास है-धरातल का
पानी में पैर-पूरी देह
लहरों के संवेग के बीच
डूबते-उतराते
खुद को संभालते-संभालते
निकल जाता है पूरा समय
मंजिल-न-ठिकाना
जूझते खुद से
उम्र भी साथ छोड़ जाती है
बच जाती है वेगवती नदी
लहरों की ऊंच-नीच
गहराइयों में पड़े पत्थर
किनारे पर हम
आनंद लेने नदी का
एक पत्थर और मारते हैं
आवाज होती हैं-छपाक।