भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ राजनिति के गिद्ध पुरूष / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
ओ राजनिति के गिद्ध-पुरूष ! नोचो न देश की लाश को
‘मत’ लेकर ‘मत’ पर मत थूको, मत गाली दो विश्वास को
यह कैसी राजनिति ! माता के -
तन के जो टुकड़े कर दे
आपसी प्रेम-भाईचारे का-
मुँह अंगारों से भर दे
जो बन अगस्त्य ले सोख एकता-सिन्धु, कुशासक ढोंगी हो
पातालपुरी ले जाय देश, पहुँचा दे सत्यनाश को
ओ गद्दी के लोभी ! ढोंगी !!
सेवा को ढोंग रचाते क्यों ?
गुण्डों से बंदूकें दगवा-
घर-घर कुहराम मचाते क्यों ?
हर बूँद लहू की गरजेगी, गिन-गिन तुमसे बदला लेगी
मत आमंत्रण दो ओ मदांध ! विप्लवी पवन उनचास को
जो अच्छे थे, वे रहे नहीं
आजादी दे, चल दिये नहीं
लोभी-लम्पट पीछे छूटे
जिनके पापों से पटी मही
जब सारा देश सुलगता हो, लावा हर प्रान्त उगलता हो
कैसे चुनाव सरगम देगा, उस उखड़ी-उखड़ी साँस को