भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कइसे जाईं ससुरारी / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कइसे जाईं ससुरारी।
खेलत मैं रहनी हो सिपुली मउनिया से आई गइले गवना के नियारी हो/कइसे।
बाबा घरे रहितें मोरा भइया घरे रहितें त फेरी दीते डोलिया कहाँरी हो/कइसे।
काँचहीं बाँसवा के डोलिया बनवलें से लागी गइलें चारि गो कहाँरी हो/कइसे।
नाहीं मोरा लूर ढंग एकहू रहनवाँ पिया हमसे करिहें पुछारी हो/कइसे।
मिली जुली लेहु सभ सखिया सलेहरी से छूटी गइलें बाबा के दुआरी हो/कइसे।
कहत महेन्दर कुछ नीको ना लागे से खुलि गइलें कपट कँवारी हो/कइसे।