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कन्नी बुन्दे सोहणे, सिर ते छ्त्ते सै मणाँ दे (जांगली ढोला) / पंजाबी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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कन्नी बुन्दे सोहणे, सिर ते छत्ते सै मणाँ दे
उत्थे देवीं बाबला, जित्थे टाल्ह वणाँ दे
बहाँ चढ़ कचावे, कराँ सैल झनाँ दे
हिकनाँ नूँ वर ढहि पहुते, पुन्ने हिकना दे
झोली पये बाल थणाँ दे !
भावार्थ
--'कानों में सुन्दर बालियाँ हैं, सिर पर सौ-सौ मन के केश,
हे पिता, मेरा विवाह वहाँ करना, जहाँ बड़ी-बड़ी टहनियों वाले 'वण' वृक्ष हों ।
मैं ऊँट की काठी पर चढ़ बैठूँ, चनाब नदी की सैर करूँ ।'
फिर किसी-किसी को वर प्राप्त होने का वचन मिल गया
और स्तनों से दूध पीते बालक उनकी झोली में आ गए ।