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कब ऐसा सोचा था मैंने मौसम भी छल जाएगा / देवमणि पांडेय

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कब ऐसा सोचा था मैंने मौसम भी छल जाएगा

सावन-भादों की बारिश में घर मेरा जल जाएगा


रंजोग़म की लम्बी रातों इतना मत इतराओ तुम

निकलेगा कल सुख का सूरज अंधियारा टल जाएगा


अक्सर बातें करता था जो दुनिया में तब्दीली की

किसे ख़बर थी वो दुनिया के रंगों में ढल जाएगा


नफ़रत की पागल चिंगारी कितनों के घर फूँक चुकी

अगर न बरसा प्यार का बादल सारा शहर जल जाएगा


दुख की इस नगरी में आख़िर रैन-बसेरा है सबका

आज रवाना होगा कोई और कोई कल जाएगा