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कब लौटोगी कथा सुनाने / जयकृष्ण राय तुषार
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कब लौटोगी
कथा सुनाने
ओ सिंदूरी शाम |
रीत गयी है
गन्ध संदली
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर
चांदनी नहीं है
रात दिशाओं में ,
टूट रहे
आदमकद शीशे
चीख और कोहराम |
माथे बिंदिया
पांव महावर
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक
फूल गूंथने
क्वांरी मांग सजाने ,
हाथों में
जादुई छड़ी ले
आना मेरे धाम |
बंद हुई
खिड़कियाँ ,झरोखे
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के
तारों पर
नंगे पांव डोलना है ,
प्यासे होठों पर
लिखना है
बौछारों का नाम |