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कभी उम्र कभी वज़न ये बताओ कि क्या हो तुम / शमशाद इलाही अंसारी
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कभी उम्र कभी वज़न ये बताओ कि क्या हो तुम
मेरे लिए तो अब भी कोई ताज़ा गुलाब हो तुम
ये और बात है कि झुक गई कमर चलते चलते
मेरे लिए तो अब भी सफ़र का आग़ाज़ हो तुम
फ़ेर कर मुँह जो रुक जाये वो है कम जर्फ़
आसमाँ भी पड़े कम मेरी वो परवाज़ हो तुम ।
"शम्स" तेरी श्रद्धा में पड़े हों कितने भी खम
देख मेरी चश्मे मौहब्बत से ऐसा आफ़ताब हो तुम ।
रचनाकाल: 16.06.2010