Last modified on 23 अगस्त 2018, at 21:42

क़रार हिज्र में आया सुकून दर्द के साथ / शहरयार

क़रार हिज्र में आया सुकून दर्द के साथ
बड़ा अजीब सा रिश्ता है एक फर्द के साथ

तुलूअ होता है दिन इसलिए कि धुंध बढ़े
हर एक रात जी मंसूब माहे-ज़र्द के साथ

सिमट रहा है इलाक़ा हमारी वहशत का
है एतराफ़ हमें इसका रंजो-दर्द के साथ

उसी की शर्तों पे तय बाक़ी का सफ़र होगा
ये अहद कल ही किया रास्ते की गर्द के साथ

है कोई जो कभी पूछे ये जाके सूरज से
कि और रहना है कब तक हवाए-सर्द के साथ।